5 सितंबर को स्कूल में होते थे तो शिक्षक दिवस होता था....उस दिन टीचर कम डांटते थे...क्लास के कुछ लड़के (ज़्यादातर लड़कियां)ग्रीटिंग कार्ड या फूल या कोई और छोटा-सा तोहफा लेकर अपने पसंदीदा टीचरों को पेश करते थे...किसी-किसी साल कार्यक्रम भी होते थे, जिसमें कुछ नया नहीं होता था...स्कूल से बाहर की दुनिया बहुत बड़ी है....सरकार को जो शिक्षक सम्मान के लायक दिखते हैं, उनको सम्मान भी मिलता है...मगर, सम्मान बटोरने के लिए 'पूज्य'शिक्षक तरह-तरह के तिकड़म भी लगाते हैं....ब्लॉग जगत के 'प्राइमरी के मास्टर' प्रवीण त्रिवेदी फतेहपुर (यूपी) में मास्टर हैं...उन्होंने हमें शिक्षक दिवस पर ये संदेशा भेजा है...हम इस इमानदार लेख का और बैठक में पहली दफा आए मास्टर साहब का भी सम्मान करते हैं... संपादकआजाद भारत में शिक्षक का इससे बड़ा अपमान और कोई नहीं हो सकता की वह सम्मानित होने के लिए ख़ुद ही आवेदन करे। आवेदन देकर यह कहना कि हम उत्कृष्ट शिक्षक हैं , मुझे सम्मानित करो एक तरह से बौद्धिक दारिद्रय का ही परिचायक है ।
ऐसी तल्ख़ और आत्मपीड़क टिप्पणियां शिक्षक समाज की ओर से हों तो शिक्षक दिवस पर पर दिए जाने वाले राष्ट्रपति और राज्यपाल पुरुस्कार अपने आप सवालों के घेरे में आ जाते है । कोई सवाल करे तो करे मगर सच तो यही है है कि जिन शिक्षकों ने आवेदन किया है, उनमे से कुछ आवेदन स्वीकार करके अधिकांश को ठुकरा दिया जाता है ।
इसका वीभत्स रूप यह है कि आज जिन विशेष उपलब्धियों पर राष्ट्रपति और राज्यपाल पुरस्कारों से आज शिक्षकों को नवाजा जायेगा, वह जमीन पर कहीं दिखाई नहीं पड़ती हैं । केवल फाइलों पर दिखने वाली उपलब्धियों पर पुरस्कार हासिल करने की दौड़ में सेवानिवृत्त हो चुके या सेवानिवृत्ति के कगार पर खड़े शिक्षक ही क्यों सफल हो पा रहे हैं ?....यह एक बड़ा सवाल है ।
आख़िर कहीं दो वर्ष का सेवा विस्तार इन पुरस्कारों के चयन के मानको को अधोमानक तो नहीं बना रहा है ? शिक्षक के असली आत्मसमान की श्रीवृद्धि कर रहे यह पुरुस्कार! या कुछ और ? अब समय आ गया है कि इन पुरस्कारों को बंद कर दिया जाना चाहिए ।
वर्ष 1950 से भारत सरकार द्वारा अध्यापकों को विशिष्ट सेवा हेतु राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करने की योजना प्रारम्भ हुई। इस योजनान्तर्गत प्रतिवर्ष चुने हुए अध्यापकों को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जाता है।
पुरस्कारों की योजना चलाने का उद्देश्य निश्चित रूप से अपने कर्तव्य के निर्वहन में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले आदर्श शिक्षकों को प्रोत्साहित करना रहा होगा। लेकिन हम सभी ने इस पुरस्कृत सूची में ऐसे शिक्षक भी देखे हैं जिन्हें सालों कक्षा में जाकर पढ़ाने की फुरसत ही नहीं मिलती। और ऐसे शिक्षकों की सूची रोज रोज लम्बी होती जा रही है ।
शिक्षकों के प्रति पूरी श्रद्धा और आदर के साथ यह खेदजनक तथ्य उल्लिखित करना चाहता हूँ कि पुरस्कार देने की यह एक ऐसी योजना है जिसमें इच्छुक व्यक्ति बाकायदा आवेदन पत्र भरकर सरकारी अधिकारियों की संस्तुति के लिए भाग-दौड़ करता है, अपने गुणों के बारे में सबूत फाइलों में दर्ज करके ऊपर तक पहुँचाता है।
क्या कोई वास्तव में महान शिक्षक इस तरह से शिक्षक पुरस्कार लेना चाहेगा ? भले ही हूँ मैं प्राइमरी का मास्टर ......चिल्ला चिल्ला कर कह रहा हूँ कि मैं हूँ उत्कृष्ट शिक्षक ..... मुझे सम्मानित करो ? आप सुन रहे हैं न ?
प्रवीण त्रिवेदी
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25 बैठकबाजों का कहना है :
जो चाहता है, इस तरह राजकीय सम्मान वह शिक्षक ही नहीं है। शिक्षक तो वह जिसे अपने विद्यार्थियों और उस के अभिभावकों से सम्मान मिले।
hame lagta hai yah samman yogy logon ko kam hi milta hai
hame lagta hai yah samman yogy logon ko kam hi milta hai
कभी मांग कर भी चीज मिले उसे सम्मन नही कहते, ओर जो अपने आप को उत्कृष्ट कहे वो सम्मन योग्य नही.
ऎसॆ शिक्षक क्या पढायेगे??? वो तो बच्चो से अपनी पेट पुजा ही करवायेगे,
शिक्षक का असली सम्मान तो उसका विद्यार्थी है, जिस दिन विद्यार्थी उसका मन से सम्मान करने लगेंगे वही उसका असली सम्मान होगा, इसके लिए आज के शिक्षक को इस लायक बनना होगा की विद्यार्थी उसका मन से सम्मान करे .
विमल कुमार हेडा
आपकी बात में दम है प्राईमरी के मास्टर साहब!!
आपका बैठक में आना अच्छा लगा !! राष्ट्रपति पुरस्कारों तक में यह धांधली ??
बड़ा महत्त्वपूर्ण प्रश्न आपने उठाया !!
उत्कृष्ट शिक्षक के लिए सिफारिशो का भी तो जुगाड़ करना पड़ता है . आखिर दो साल की नौकरी बडबाने के लिए पैरवी तो करवानी ही पड़ेगी . ख़ैर शिक्षक दिवस आप को बधाई ,
आपने एक अच्छा मुद्दा उठाया है. लेकिन आपने एक जगह लिखा है कि यह पुरुस्कार बंद कर देना चाहिए. मैं कहूँगा कि सिर्फ पुरुस्कार वितरण का तरीका बदलने के बारे में सोचना चाहिए. एक बात और इस तरह से पुरुस्कार मिलने पर जब शिक्षको को ही आपत्ति नहीं है तो कोई उअर क्यों उस बारे में सोचे.
इस आलेख के माध्यम से सभी शिक्षकों को हार्दिक बधाई देती हूं.जिसकी पहुंच उसे मिले मान-सम्मान .तभी तो कलम चली है .बधाई
लखनऊ से खबर आई है कि हज़ारों शिक्षामित्र अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतरे तो पुलिस ने जमकर लाठियां बरसाईं....शिक्षक दिवस पर यूपी सरकार से इसी सम्मान की उम्मीद बची थी....आपका लेख अच्छा है..थोड़ा और तथ्य भी देते तो बेहतर था...
जाने क्यों धारावाहिक 'चाणक्य' के शिक्षकों के आपसी सम्वाद और तर्क वितर्क याद आ गए !
एक बार देख डालिए मास्साब। हमारी चले तो आप को 'पुरस्कार' देके ही छोड़ें लेकिन इस अकिंचन की औकात ही क्या ;)
प्रश्न यह है कि आप अकिंचन से सम्मान चाहते हैं या राज्यसत्ता से ?
मांगने पर मिला सम्मान सम्मान की परिभाषा के दायरे में नही आता..जो मिलता है वो कुछ और हो सकता ..पर वास्तविक सम्मान नहीं...शिक्षक का सम्मान उसको लोगों से मिला आदर होता है..कोई पुरस्कार या प्रशस्ती पत्र नहीं..अच्छा लिखा है..
किसी भी प्रकार के राजकीय सम्मान पुरुस्कारों का जो वास्तविक सत्य है,वह आज किसी से छुपा हुआ नहीं है....क्या कहा जाय...यह स्थिति मन वितृष्णा से भर देती है...
bachcho se milne wala pyaar hi sachch samman hai. samman ko khareeda nahin ja sakata balki samman kamaya jata jisako shayad shikshak bhool chuke hai.
me sahmat hu. ye purskar padhane v school ke liye vishesh kam karne wale ko nhi varn chaplusi v jugad valo ko milte h. sub jagah ye hi hal h.26 january v 15 agast par apne hi vibhg ke sare karmiko ko sammnit kar diya jatah. kyo ki yogy to ak jagah hi h.
yogy ki file sifarish ke chasme se dikhai nhi deti. sammnit hone ke jo yosyta chahiye wo karmath shishko me nhi hoti.
'आजाद भारत में शिक्षक का इससे बड़ा अपमान और कोई नहीं हो सकता की वह सम्मानित होने के लिए ख़ुद ही आवेदन करे। आवेदन देकर यह कहना कि हम उत्कृष्ट शिक्षक हैं , मुझे सम्मानित करो एक तरह से बौद्धिक दारिद्रय का ही परिचायक है ....' बहुत सुन्दर और यथार्थ उकेरता लेख।
Right
मान्यवर शिक्षक के इसी दंश को सहते हुए ये बात नीति निर्धारकों के मंच तक लेकर गया बैंगलोर के सी वी रमन इंस्टिट्यूट में आयोजित नई शिक्षा नीति के विभिन्न परिदृश्यों पर चर्चा सेमिनार तक और ये बात राष्ट्रीय मंच पर साझा की गई जिसका परिणाम इस वर्ष के राष्ट्रीय शिक्षक पुरकारों के चयन में शिक्षकों को आवेदन नही करना पड़ा कि मैं उत्कृष्ट शिक्षक हूँ मुझे सम्मानित करो शिक्षक अब इस दंश से मुक्त है ...
Bahut sundar likha
बहुत ही सुंदर लेख है हम किसी पुरस्कार के लिए लालायित रहे यह अध्यापक को शोभा नहीं देता हमारा सम्मान तो हमें तभी मिल जाता है जब हमारे पढ़ाई हुए बच्चे बाद में आ कर के हमारा सम्मान करते हैं या कहीं मिल जाते हैं तो तुरंत आते हैं और हमारा सत्कार करते हैं और अपने सभी साथियों को बताते हैं कि यह सर या मैडम हमें इतना अच्छा पढ़ाते थे तो उसे सुनने के बाद जो सम्मान मिलता है वह कहीं नहीं मिल सकता सच्चा सम्मान तो वही है जो हमें बच्चा या अभिभावक देते हैं ना की किसी आयोजन में ऐसा महसूस होता है जैसे हम जिस लक्ष्य के लिए भेजे गए थे वह लक्ष्य पूरा हुआ
Shikshak ka sabse bada puraskar uski atma santushti hai. yadi usko use kam karne mein Khushi milati hai to vahi uska sabse bada puraskar
कुछ लोग जो शिक्षक को हेय दृष्टि से देखते थे, पर केवल अच्छे वेतन के कारण या कहीं और जॉब के लायक न पाए जाने के कारण आज वो भी शिक्षक बन गए हैं। उनसे आदर्श शिक्षक के व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। पुरस्कार की लाइन में वो धक्का मारकर आगे पहुँचने की होड़ में है।
बिल्कुल सही बटबकाही आपने, यह बात बौद्धिक दारिद्री का परिचायक है की हम स्वयं अपने गुणों का बखान करें, खुद के किए नवाचारों का गुणगान करें, अपने मुंह मियां मिट्ठू बने, खुद ही आवेदन भी करें, तब कहीं जाकर सम्मान मिलेगा, इससे अच्छा है की हमें हमारी कक्षा के विद्यार्थियों के साथ सुकून से रहने दें, ऐसा सम्मान नहीं चाहिए ।
मैं इसके सख्त खिलाफ हूं कि शिक्षक अपने लिये स्वयं बताये कि मै श्रेष्ठ हूं इन पुरूस्कारों से बेहतर है जब हमारा पढ़ाया छात्र /छात्रा उच्च पदस्थ होते हुये भरी भीड़ में से आ कर पैर छूकर सम्मान देते हैं तब हम अपनी नज़र में सम्मानित होते है
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