Wednesday, August 12, 2009

कहाँ से आया हमारा तिरंगा

तिरंगा का जीवन-क्रम

सचिंद्रनाथ बोस का तिरंगा

भीकाजी कामा द्वारा जर्मनी में फहराया गया तिरंगा

गदर पार्टी का तिरंगा

बाल गंगाधर तिलक व एनी बेसेंट का झंडा

1921 में कांग्रेस के अहमदाबाद सम्मेलन में फ़हराया गया झंडा कभी

1931 में कांग्रेस की कार्यकरिणी द्वारा गठित सात सदस्यीय कमेटी द्वारा पारित झंडा

1931 में झंडे में कराची में हुई बैठक के बाद किये गये परिवर्तन

आज़ाद हिन्द फ़ौज़ का तिरंगा

आज का तिरंगा
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा.... ये बोल सुनते ही शरीर में रौंगटे खड़े होने लगते हैं और हम गर्व से कह उठते हैं कि तिरंगा हमें सबसे प्यारा है। खेलों के मैदान में दर्शक यही तिरंगा फ़ैला कर अपनी खुशी का इजहार करते हैं। १५ अगस्त को पतंगें चुनते हुए तिरंगों का खास ध्यान रखा जाता है। इतने खास तिरंगे के बारे में आइये थोड़ा जानते हैं।

२२ जुलाई १९४७ को आज के तिरंगे को मान्यता मिली। आज के तिरंगे को तो हम जानते ही हैं। तीन रंग बीच में अशोक चक्र। सबसे ऊपर केसरिया, फिर सफ़ेद और फिर हरा। लेकिन इससे पहले इस तिरंगे के कितने स्वरूप बदले हैं उसके लिये इतिहास में झाँकना होगा। सबसे पहले १९०४-०५ में स्वामी विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता ने एक झंडा प्रस्तुत किया। लाल और पीले रंगे के इस झंडे में वज्र और कमल के फूल भी थे। लाल रंग स्वतंत्रता संग्राम का तो पीला विजयी होने का प्रतीक था। वज्र शक्ति को तथा कमल शुद्धता को दर्शाता था। १८८२ में बंगाल की पृष्ठभूमि पर आधारित आनंदमठ उपन्यास के गीत "वंदे मातरम" को बंगाली भाषा में लिखवाया। इस झंडे को काँग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में दिसम्बर १९०६ में प्रदर्शित किया गया।

उस समय और भी तरह तरह के झंडे बनाये जाने लगे। चूँकि हमारा देश का हर हिस्सा अपने आप में दूसरे से अलग है और उस समय भारत का कोई एक झंडा नहीं हुआ करता था तो हर कोई अपने सुझाव दे रहा था। उन्हीं में से एक था सचिंद्रनाथ बोस का तिरंगा जो उन्होंने ७ अगस्त १९०६ को बंगाल के विभाजन के विरोध में फ़हराया था। सबसे ऊपर था संतरी रंग, बीच में पीला व सबसे नीचे था हरा रंग। संतरी रंग की पट्टी में ८ आधे खिले हुए कमल के फूल थे। सबसे नीचे एक सूरज और एक चंद्रमा था व बीच में देवनागरी में वंदेमातरम लिखा हुआ था।

उसके बाद २२ अगस्त १९०७ को भीकाजी कामा ने एक और तिरंगे को जर्मनी में फ़हराया। इसमें हरा रंग सबसे ऊपर, बीच में केसरिया और सबस नीचे लाल रंग था। हरा रंग इस्लाम व केसरिया हिन्दू व बौद्ध धर्म का कहा गया। हरे रंग की पट्टी में आठ कमल थे जो ब्रिटिश हुकूमत के समय भारत के आठ प्रांतों को दर्शाते थे। लाल रंग की पट्टी पर चाँद और सूरज बने हुए थे। इस तिरंगे को भीकाजी के साथ मिलकर बनाया था वीर सावरकर और श्याम जी कृष्ण वर्मा ने।

इसी तरह से गदर पार्टी ने अपना झंडा निकाला और बाल गंगाधर तिलक व एनी बेसेंट ने मिलकर अपने ध्वज का इस्तेमाल किया। देखिये इनकी झलक...

सन १९१६ में पहली बार कांग्रेस ने एक ध्वज का निर्माण करने का फ़ैसला किया। ये कार्य सौंपा गया मछलीपट्टनम, आंध्रप्रदेश के लेखक पिंगली वेंकैया को। महात्मा गाँधी ने उन्हें ध्वज में "चरखा" इस्तेमाल करने की हिदायत दी। ये वो समय था जब चरखे के इस्तेमाल से लोग खादी को अपना रहे थे और उसी से एकता में बँध रहे थे। पिंगली वेंकैया ने खादी का ही ध्वज बनाया और उसमें लाल व हरे रंग की पट्टियों पर "चरखा" लगाया। परन्तु महात्मा गाँधी का मानना था कि लाल व हरा रंग तो हिन्दू और मुस्लिम समुदायों को प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिये अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लिये सबसे ऊपर सफ़ेद रंग भी जोड़ा जाये। उस झंडे को १९२१ में लाया गया जिसे सबसे पहले कांग्रेस के अहमदाबाद सम्मेलन में फ़हराया गया किन्तु ये झंडा कभी भी कांग्रेस का आधिकारिक झंडा न बन सका क्योंकि ये काफ़ी हद तक आयरलैंड के झंडे से भी मेल खाता था।

देश में बहुत से लोग थे जो झंडे के साम्प्रदायिक व्याख्या से नाखुश थे। १९२४ के कलकत्ता के अपने अधिवेशन में अखिल भारतीय संस्कृत काँग्रेस ने झंडे में केसरिया रंग लाने की इच्छा जताई। उसी साल कहा गया कि गेहुँआ रंग हिन्दू संन्यासी व मुस्लिम फ़कीर दोनों का प्रतिनिधित्व करता है। सिख भी झंडे में पीले रंग को अपनाने की जिद करने लगे। इन सबके बीच १९३१ में कांग्रेस की कार्यकरिणी ने सात सदस्यीय कमेटी का गठन करने का निर्णय किया। जिसमें सरदार पटेल, जवाहर लाल नेहरू, मौलाना आज़ाद, मास्टर तारासिंह, काका कालेकर, डा. हर्दिकार व पट्टभी सीतारमैवा जैसे दिग्गज शामिल थे। इस कमेटी ने केसरिया रंग के झंडे का निर्माण किया जिसमें ऊपर चरखा बना हुआ था। ये विडम्बना है कि जिस दल के पटेल, नेहरू व आज़ाद सरीखे नेताओं ने केसरिया रंग की वकालत की उस भगवा रंग से कांग्रेस तब भी खौफ़ खाती थी और आज भी। संघ उस समय महज छह वर्ष पुराना ही था तो यह कहना कि उसके भगवा रंग से कमेटी प्रभावित हो गई होगी, बेमानी होगा। खैर कांग्रेस के लिये वो रंग साम्प्रदायिक हो गया और उस ने पटेल, नेहरू और मौलाना आज़ाद द्वारा पारित झंडे को भी मानने से इंकार कर दिया। ।

१९३१ में ही कराची में फिर कमेटी बैठी और पिंगली वैंकैया को फिर कमान सौंपी गई और केसरिया, सफ़ेद व हरे रंग का एक झंडा सामने आया जिसके बीच में चरखा बना हुआ था। इस झंडे से हम सब परिचित हैं।

दूसरी ओर सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिन्द फ़ौज़ की स्थापना उस झंडे के तले की जिसमें बाघ का चित्र बना हुआ था।

स्वतंत्रता दिवस के महज २४ दिन पहले आनन फ़ानन में एक कमेटी गठित की गई जिसकी अध्यक्षता डा. राजेंद्र प्रसाद को दी गई। इसमें सी. राजगोपालाचारी, सरोजिनी नायडू, अबुल कलाम आज़ाद, के.एम.मुंशी व बी.आर अम्बेडकर शामिल थे। तब चरखे का स्थान लिया सारनाथ के "चक्र" ने। इस चक्र का डायामीटर सफ़ेद पट्टी की ऊँचाई का तीन चौथाई था। इस झंडे को स्वीकृति मिली व यही झंडा आज का तिरंगा बना।

काश इस झंडे पर वंदेमातरम भी लिखा होता!!!

वंदेमातरम.. भारत माता की जय...!!!

--तपन शर्मा

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12 बैठकबाजों का कहना है :

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

भारत की आन, बान और शान है तिरंगा..
आपने इस बारे मे बहुत रोचक और ज्ञांवर्धक जानकारी दी..

बधाई..हो!!!

Arshia Ali का कहना है कि -

Jaankaaree ke liye aabhaar.
{ Treasurer-S, T }

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

भाई,

इतिहास की किताब में पढ़ा तो था कि काफ़ी मशक्कत के बाद हमारा तिरंगा बना, लेकिन इतना डीटेल में भी नहीं। और उनको देखा तो शायद आज ही है। बढ़िया है गुरु

Manju Gupta का कहना है कि -

ज्ञानवर्धक व्यापक जानकारी मिली .आभार आजादी के जांबाजों को समर्पित हैं उदगार-
देश की आजादी के लिए तिरंगा नहीं छोडा .
अमन का तरंगा बन के दुश्मनों को खदेडा .
देश की गतिविधि के लिए सदा हो गये मौन .
हर वीर की साँस ने वन्देमातरम कहा होगा .

Nikhil का कहना है कि -

वाह तपनजी,
बढ़िया जानकारी.....तिरंगे से जुड़ी जानकारियां बहुत कम ही मिलती हैं कहीं...कम से कम ब्लॉगिंग पर तो कहीं नहीं देखा....

निर्मला कपिला का कहना है कि -

इस विस्तरित महत्वपूर्ण जानकारी के लिये तपन जी का धन्यवाद जय हिन्द्

seema gupta का कहना है कि -

महत्वपूर्ण जानकारी आभार
वंदेमातरम.. भारत माता की जय
regards

Ravi Mishra का कहना है कि -

बहुत ..बहुत ..बहुत अच्छा...धन्यवाद...

अबयज़ ख़ान का कहना है कि -

बहुत अच्छी जानकारी दी है.. इतना तो मैंने कभी स्कूल-कॉलेज में भी नहीं पड़ा

Shamikh Faraz का कहना है कि -

बहुत ही अच्छी जानकारी दी आपने. आपका यह आलेख मैंने अमर उजाला में भी पढ़ा था.

pallavi का कहना है कि -

very good tapan , bahut R&D karni padi hogi

●๋• नीर ஐ का कहना है कि -

Waaah sahab....jaankari share karne k liye bahut bahut shukriya. :)

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