tag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post9157392792992342645..comments2024-03-23T09:00:33.025+05:30Comments on बैठक Baithak: दिल्ली की हिन्दी अकादमी में उपाध्यक्ष !नियंत्रक । Adminhttp://www.blogger.com/profile/02514011417882102182noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post-91042735155678697282009-07-12T21:55:21.984+05:302009-07-12T21:55:21.984+05:30आखिरी गद्द्यांश में व्यंग बहुत अच्छी तरह से सजाया ...आखिरी गद्द्यांश में व्यंग बहुत अच्छी तरह से सजाया गया. लोग जाती हुई चीज़ों को नहीं छोड़ते तो आती हुई चीज़ों को क्यों छोडेंगे. "जब आना-जाना किसी नियम से न होता हो, तो अक्लमंदी इसी में है कि हवा में तैरती हुई चीज को लपक कर पकड़ लिया जाए।" <br />सबसे आखिर में लिखी हुई आपकी ये लाइन व्यंग में एक नई जान डाल देती है.<br />साथ ही एक सुझाव भी देना चाहूँगा कि मेरी नज़र में अगर इसमें कुछ हास्य कविता कि पंक्तियाँ होती या व्यंग से भरी हुई कुछ लाइन तो कुछ और बेहतर हो सकता था. वैसे बहुत ही अच्छा लगा आपका ये व्यंग. व्यंग के बारे में कहना चाहूँगा <br /><br />"This Satire is a sort of glass wherein beholders do generally discover everybody's face but their own; which is the chief reason for that kind reception it meets with in the world, and that so very few are offended with it."Shamikh Farazhttps://www.blogger.com/profile/11293266231977127796noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post-29130173096392137592009-07-12T17:57:53.191+05:302009-07-12T17:57:53.191+05:30हाँ जी हाजी बढ़िया व्यंग्य है.बधाई .हाँ जी हाजी बढ़िया व्यंग्य है.बधाई .Manju Guptahttps://www.blogger.com/profile/10464006263216607501noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post-83055141149388971372009-07-12T14:13:42.920+05:302009-07-12T14:13:42.920+05:30बहुत खूब व्यंग्य है.आज राजनीति का स्तर इतना गिर गय...बहुत खूब व्यंग्य है.आज राजनीति का स्तर इतना गिर गया है कि अपने फायदे के लिए गधे को भी बाप बना लिया जाता है. अपराधियों और अनपढों का बोलबाला है उन्हें क्या पता कि कहाँ सुइ की जरुरत है कहाँ तलवार की.Dishahttps://www.blogger.com/profile/14880938674009076194noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post-30468125427811527732009-07-12T09:10:57.920+05:302009-07-12T09:10:57.920+05:30बहुत बडिया आलेख है अब तो व्यंग की भी खैर नहीं जिस ...बहुत बडिया आलेख है अब तो व्यंग की भी खैर नहीं जिस चीज़ को लोगोम से दूर करना हो उसे राज नीति का नकाब पहना दिया जाता है उसे राष्ट्र्य बना दिया जाता है अब देखिये ना तिरण्गे को ले लीजीये जिसे मरे हुये बेईमान नेता के शव पर तो डाला जा सकता है मगर एक नँगे आदमी को ढकने के काम नहीं आ सकता् --राष्ट्रिय वाक्य जिसका राष्ट्र के निर्माताओं से दूर दूर का रिश्ता नहीं राष्ट्रिय गीत और राश्ट्रिय गान जो नेताओं को अता नहीं ना ही उनके सुर इसमे फिट बैठते हैं और राश्ट्रिय भाषा जो अभी भी भारतिओं से दूरी बनाये हुये है और राश्टृ मन्त्र ओम जो सिर्फ धर्म की दुकानों पर बिकने लगा है और कोई नेता उसे जपता नहीं है और किस किस चीज़ का न्नाम गिनाऊँ जो राश्ट्रिय तो बना दी गयी है सिर्फ इस लिये कि राश्ट्र की जनता से दूर रहे और नेता उनके नकाब मे छुपे रहेंब अगर व्यंग भी उस नकाब मे चला गया है तो समझो अब व्यंग भी आम आदमी से दूर होने वाला है हाजी जी से निवेदन है कि खुद को बचाये रखें लोगों की एकमात्र मुस्कराहट को खोने ना दें आभार्निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.com