tag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post5698491448153067536..comments2024-03-23T09:00:33.025+05:30Comments on बैठक Baithak: राम बाजार जाता है लेकिन राधा रोटी क्यों बनाती है....नियंत्रक । Adminhttp://www.blogger.com/profile/02514011417882102182noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post-53921231825874505202010-06-26T11:03:13.014+05:302010-06-26T11:03:13.014+05:30i dont know your email id alok ji so i m wishing y...i dont know your email id alok ji so i m wishing you a belated happy bday....here on baithak hope you can receive my wisheshimanihttp://anhubhuti-abhivyakti.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post-29963808399616507872010-06-24T23:17:27.491+05:302010-06-24T23:17:27.491+05:30हिमानी ने आलोक के जन्मदिन पर बढ़िया सीख भरा तोहफा ...हिमानी ने आलोक के जन्मदिन पर बढ़िया सीख भरा तोहफा दे दिया...ये भी खूब रही....Nikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post-45928462619027796692010-06-24T17:29:36.623+05:302010-06-24T17:29:36.623+05:30आलोक जी आपके आक्रोश को मैं गलत नहीं कहूंगी जो सवाल...आलोक जी आपके आक्रोश को मैं गलत नहीं कहूंगी जो सवाल आपने मेरे यहां होने पर उठाया है उसका जवाब मैं जरुर देना चाहूंगी , हालांकि मुझे नही समझ आया कि आप मुझे कहां समझ रहे हैं बैठक पर अगर मैं कुछ लिख रही हूं तो ये मेरे समृदध होने या ऊंची पढाई का नमूना नहीं है ब्लाग जगत में ऐसी भी तमाम महिलाएं सक्रिय है जो गृहिणयां हैं और कम पढ़ीलिखी है जहां तक मेरा सवाल है तो बेशक मैने मीडिया की पढ़ाई की है लेकिन तमाम आधुनिक ख्यालो से ओतप्रोत होने के बावजूद भी मेरी मां नहीं चाहती कि मैं आगे पढूं । यही बात कहीं न कहीं मैने लेख में रखी है सामयिकता पर जो सवाल आपने उठाया है उसका जवाब शायद निखिल जी ने शुरुआत में ही दे दिया था। <br /><br /><br />और आखिर में आपके मुझसे माफी मांगने का कारण ये रहा कि मैं महिला हूं जबकि पहली बात तो एक पाठक के तौर पर आपका अपनी प्रतिकि्रया देने का पूरा हक है इसलिए माफी मांगने या देने की कोई गुंजाइश ही नहीं रह जाती दूसरा ये कि अगर ये लेख किसी पुरुष ने लिखा होता तो क्या आप माफी नहीं मांगते ? इससे तो ऐसा लगता है कि पुरुष ही पुरुष की इज्जत नहीं करना चाहते. <br />यही कहूंगी कि आपको पढ़कर जो भी लगे अपनी प्रतिक्रिया देते रहें मैं सुधार की गुजांइश को समझते हुए उस पर जरुर ध्यान दूंगीhimanihttp://anubhuti-abhivyakti.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post-6420585314679558832010-06-24T17:29:34.260+05:302010-06-24T17:29:34.260+05:30आलोक जी आपके आक्रोश को मैं गलत नहीं कहूंगी जो सवाल...आलोक जी आपके आक्रोश को मैं गलत नहीं कहूंगी जो सवाल आपने मेरे यहां होने पर उठाया है उसका जवाब मैं जरुर देना चाहूंगी , हालांकि मुझे नही समझ आया कि आप मुझे कहां समझ रहे हैं बैठक पर अगर मैं कुछ लिख रही हूं तो ये मेरे समृदध होने या ऊंची पढाई का नमूना नहीं है ब्लाग जगत में ऐसी भी तमाम महिलाएं सक्रिय है जो गृहिणयां हैं और कम पढ़ीलिखी है जहां तक मेरा सवाल है तो बेशक मैने मीडिया की पढ़ाई की है लेकिन तमाम आधुनिक ख्यालो से ओतप्रोत होने के बावजूद भी मेरी मां नहीं चाहती कि मैं आगे पढूं । यही बात कहीं न कहीं मैने लेख में रखी है सामयिकता पर जो सवाल आपने उठाया है उसका जवाब शायद निखिल जी ने शुरुआत में ही दे दिया था। <br /><br /><br />और आखिर में आपके मुझसे माफी मांगने का कारण ये रहा कि मैं महिला हूं जबकि पहली बात तो एक पाठक के तौर पर आपका अपनी प्रतिकि्रया देने का पूरा हक है इसलिए माफी मांगने या देने की कोई गुंजाइश ही नहीं रह जाती दूसरा ये कि अगर ये लेख किसी पुरुष ने लिखा होता तो क्या आप माफी नहीं मांगते ? इससे तो ऐसा लगता है कि पुरुष ही पुरुष की इज्जत नहीं करना चाहते. <br />यही कहूंगी कि आपको पढ़कर जो भी लगे अपनी प्रतिक्रिया देते रहें मैं सुधार की गुजांइश को समझते हुए उस पर जरुर ध्यान दूंगीhimanihttp://anubhuti-abhivyakti.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post-31883806965029167222010-06-20T13:28:50.608+05:302010-06-20T13:28:50.608+05:30देरी और शायद (होने वाली)गलत बयानी के माफी...
माफी ...देरी और शायद (होने वाली)गलत बयानी के माफी...<br />माफी इसलिए कि आप महिला हैं...<br />क्योंकि आज भी समाज में सिर्फ महिलाओं की ही इज्जत है...पुरूष हमेशा की तरह इज्जत और गैरत विहीन नक्कारेपन का टैग लिए फिरते रहते हैं...यहां-वहां..जैसे कि मैं आज यहां...<br />बात सही कही आपने...बेहद यथार्थ और दुरूस्त...लेकिन थोड़ी कम सामयिक...<br />आपका पुराना पाठक हूं...इसलिए कहने की जुर्रत कर पा रहा हूं...<br />एक सवाल है मन में...सिर्फ एक सवाल...<br />पूछ लेता हूं...<br />‘फिर आप ऐसी क्यों हैं...यहां क्यों हैं (अभी आप जहां हैं और जो कर रही हैं)?’<br />हमेशा से मुझे इस बात का खेद रहा कि मैं पुरूष हूं...क्योंकि बचपन से ही इसी सोच पर टिका रहा कि आखिर क्यों हर बार राम ही बाज़ार जाता है (क्योंकि इस तरह के तमाम साहित्य और आलेखों को बचपन में ही चाट गया था)...क्यों नहीं राधा...लेकिन समस्या हरबार यही रही कि ये सारे महान विचार सिर्फ बाज़ार (और अक्सर बार) जाने वाली लड़कियों और महिलाओं के दिमाग में ही कौंधते हैं...<br />खैर, अच्छा ही है...आलोक साहिलhttps://www.blogger.com/profile/07273857599206518431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post-998450874562955662010-06-16T22:46:37.669+05:302010-06-16T22:46:37.669+05:30डॉ राष्ट्रप्रेमी जी,
रोचक जानकारी के लिए शुक्रिया....डॉ राष्ट्रप्रेमी जी,<br />रोचक जानकारी के लिए शुक्रिया...बैठक पर आते रहें..Nikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post-39370613018732147072010-06-16T17:58:59.373+05:302010-06-16T17:58:59.373+05:30राम बाजार जाता है लेकिन राधा रोटी क्यों बनाती है; ...राम बाजार जाता है लेकिन राधा रोटी क्यों बनाती है; कोई बात नहीं अब राधा बाजार जाने लगी है और धीरे-धीरे राम रोटी बनाना ही नही कपड़े भी धोना शुरु कर देगा. समय बदल रहा है, लड़्कियां कठिनाइयों में भी अपना मार्ग बना रही हैं किन्तु दिल्ली का ISBT कश्मीरी गेट पर महिलाओं पर विशेष महरबान है. सुलभ शोचालय पर स्पष्ट लिखा है कि मूत्रालय के प्रयोग करने का कोई शुल्क नहीं लगेगा किन्तु बकोल वहां तैनात कर्मचारी वह लिखावट पुरानी हो चुकी है और बकवास है- पुरुषों से मूत्रालय के प्रयोग करने पर २ रुपये तथा महिलाओं से ५ रुपये लगते है. देश की राजधानी का बस टर्मिनल पर महिला पुरुषों के मामले में यह भेद-भाव है और किसी अधिकारी के ध्यान में नहीं आ पा रहा है? क्या कोई जबाब है कि महिलाओं पर इतनी महरबानी क्यों? जब राम को २ रु व राधा को पांच रुपये देने पड़ेंगे तो हो सकता है. राधा बाजार जाते-जाते रोटी बनाने लग जाय और राम को ही बाजार भेज दे.डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमीhttps://www.blogger.com/profile/01543979454501911329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post-83885945739085222702010-06-16T17:57:13.281+05:302010-06-16T17:57:13.281+05:30राम बाजार जाता है लेकिन राधा रोटी क्यों बनाती है; ...राम बाजार जाता है लेकिन राधा रोटी क्यों बनाती है; कोई बात नहीं अब राधा बाजार जाने लगी है और धीरे-धीरे राम रोटी बनाना ही नही कपड़े भी धोना शुरु कर देगा. समय बदल रहा है, लड़्कियां कठिनाइयों में भी अपना मार्ग बना रही हैं किन्तु दिल्ली का ISBT कश्मीरी गेट पर महिलाओं पर विशेष महरबान है. सुलभ शोचालय पर स्पष्ट लिखा है कि मूत्रालय के प्रयोग करने का कोई शुल्क नहीं लगेगा किन्तु बकोल वहां तैनात कर्मचारी वह लिखावट पुरानी हो चुकी है और बकवास है- पुरुषों से मूत्रालय के प्रयोग करने पर २ रुपये तथा महिलाओं से ५ रुपये लगते है. देश की राजधानी का बस टर्मिनल पर महिला पुरुषों के मामले में यह भेद-भाव है और किसी अधिकारी के ध्यान में नहीं आ पा रहा है? क्या कोई जबाब है कि महिलाओं पर इतनी महरबानी क्यों? जब राम को २ रु व राधा को पांच रुपये देने पड़ेंगे तो हो सकता है. राधा बाजार जाते-जाते रोटी बनाने लग जाय और राम को ही बाजार भेज दे.डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमीhttps://www.blogger.com/profile/01543979454501911329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post-81373351070412903282010-06-15T23:25:55.031+05:302010-06-15T23:25:55.031+05:30निर्मला जी,
मैं अमेरिका तो नहीं गया मगर अंडरगार्म...निर्मला जी, <br />मैं अमेरिका तो नहीं गया मगर अंडरगार्मेंट छोड़कर आने वाले पुरुष हिंदुस्तान में खूब देखे हैं.....वही पुरुष अमेरिका जाकर भी बसते हैं तो वहां भी वही सोच लेकर जाएंगे.....<br />राकेश जी की दोनों घटनाएं भी बहस के लायक हैं......मेरी बड़ी दीदी मेडिकल की तैयारी कर रही थी, 10 मई को परीक्षा थी और पापा ने 19 अप्रैल को शादी तय कर दी उसकी.....वो आज तक डॉक्टर नहीं बन पाई...हां, अपने पति, देवर और ससुर के अंडरगार्मेंट्स साफ ज़रूर करती है....हम कुछ नहीं कर सकते...उफ्फ....Nikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post-34182209706438318112010-06-15T20:58:31.804+05:302010-06-15T20:58:31.804+05:30ये आलेख पढ़ दो वाकए मेरे ज़ेहन में बिल्कुल ताज़ा ह...ये आलेख पढ़ दो वाकए मेरे ज़ेहन में बिल्कुल ताज़ा हो गईं। तीन महीने पहले मैं अपने घर जा रहा था तो इलाहाबाद स्टेशन पर मेरी मुलाकात मेरी एक ममेरी बहन से हुई, जिससे उस दिन से पहले मैं कभी नहीं मिला, उसके पिता यानि मेरे मामा रेलवे में इंजीनियर हैं, मैंने हर मुलाकात में पूछा जाने वाला सवाल किया, क्या कर रही हो, उसके बताने से पहले मामीजी बताने लगीं कि तीन साल से मेडिकल की तैयारी कर रही है। तपाक से मेरा दूसरा सवाल, तीन साल से क्यों, नहीं क्लिक होता तो आगे बढ़ो, लड़कियों के लिए तो इतने आप्शन हैं, मां बेटी का चेहरा देखने लायक, मामी जी सफाई देने लगीं कि नहीं सोच रहे हैं कि एक दो बार और देख लेते हैं, फिर सोचा जाएगा, शादी ब्याह भी तो करना है ना। मेरी ट्रेन की सीटी बज गई और मैं कई सवाल मन में लिए अपनी बर्थ पर आकर टिक गया, पूरे रास्ते सोचता रहा कि एक पढ़े-लिखे इंजीनियर के घर में बेटियों के बारे में ये दोहरा ख़्याल क्यों? दूसरा वाकया गोरखपुर का, मेरी भांजी ने फ़ोन किया, पता लगा आज ही उत्तर प्रदेश बोर्ड का दसवीं का नतीजा आया है, मैं अपनी इस भांजी से आज तक नहीं मिल पाया हूं, कभी देखा भी नहीं है, पर ये जानता हूं कि वो गांव में पली बढ़ी है, यानि माहौल बेशक परंपरावादी हो सकता है क्योंकि अपनी बहन को तो जानता ही हूं। बहरहाल उसका नतीजा मैने इंटरनेट पर देखा तो दंग रह गया 78 फ़ीसदी नंबर, फ़ोन पर बात करते वक्त कभी पता नहीं चला कि वो इतनी प्रतिभावान हो सकती है। नतीजे के 5 दिन बाद ही उसकी शादी हो जाती है। हालांकि जश्न हर जगह है, उम्मीद भी है कि कुछ अच्छा हो जाएगा, लेकिन क्या, सवाल तो यही है। कहां अच्छा या भला होने वाला है, सवाल तो यहां भी वही है कि हम अपनी परंपरा और रूढ़ता की जकड़न से आज़ाद नहीं हो पा रहे, और दोष भी किसे दें। अपने मां-बाप को या समाज के उस स्वरूप को, जो आज भी वक्त के बदलाव को नहीं समझ पा रहा।<br />ज़्यादा लिख गया हूं तो माफ़ी चाहता हूं, लेकिन मन उद्वेलित होता है जब कुछ कर नहीं पाता।rakesh tiwarihttps://www.blogger.com/profile/07905396507135030752noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post-66714045138119057832010-06-15T18:02:18.325+05:302010-06-15T18:02:18.325+05:30हिमानी ji
kaha to sahi hai aap ne chahe ladki ki...हिमानी ji <br /><br />kaha to sahi hai aap ne chahe ladki kitna bhi pad likh le duniya ki najro me ladki hi hai <br /><br />magar sach to ye bhi hai ki duniya ke najariyen ko badlna bahut muskil hai magar aage badna hai to pahle apna najariya badlana hogaShekhar Kumawathttps://www.blogger.com/profile/13064575601344868349noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post-59958900484112854702010-06-15T09:07:55.025+05:302010-06-15T09:07:55.025+05:30निखिल जी ये आलेख बिलकुल सत्य तथ्यों पर आधारित है य...निखिल जी ये आलेख बिलकुल सत्य तथ्यों पर आधारित है ये एक लडकी की सोच नही वरन पूरे नारी समाज की सोच है शायद ही नारी की स्थिती कभी सुधरे। आज पढ लिख कर भी सारी जिम्मेदारियाँ लडकी पर ही है घर चलाना बच्चे पालना पढाना घर के सब काम आदमी को तो नौकरी से फुर्सत नही ाउरत चाहे नौकरी भी करती हो मगर घर की प[ओओरी जिम्मेदारी उसकी है भारत मे ही नही मैने अमेरिका मे भी देखा कि पति नहा कर अपने अंदर गार्मेन्ट्स भी बाथरूम से नही उठाते बेचारी पत्नि चाहे नौकरी करती हो घर का काम उसे ही करना है हम विदेशियों की नकल भी अपनी सुविधा अनुसार ही करते हैं मैने वहाँ बहुत सी लडकियों से उनकी दिन्चर्या पूछी मगर निराश ही हुयी हाँ वहाँ पति खाना भी बना तो लेते हैं लेकिन जिस दिन मूड हो कुछ अलग करने का।कुछ लडकियों की दशा इतनी बदतर है{ मै बदतर कहूँगी} कि उन्हें एक एक पैसे के लिये पति पर निर्भर रहना पडता है और उन्हें ये भी पता नही होता कि उनके पति की तन्ख्वाह असल मे कितनी है। मतलव अन्दर से3 कुछ नही बदला बस आधुनिकता का नकाव पहन लिया है अन्दर वही सडा हुया लबादा है। खैर ये विशय अलग से है। अलेख बहुत अच्छा लगा और लेखिका को शाबास और आशीर्वाद।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765263009855166532.post-41480824403103851262010-06-14T22:53:47.370+05:302010-06-14T22:53:47.370+05:30बढ़िया आलेख...लड़कियों के लिए समाज कभी भी अच्छी नज...बढ़िया आलेख...लड़कियों के लिए समाज कभी भी अच्छी नज़र नहीं रखता....आपने मेरे मन की बात रख दी क्योकि मैं लिखना नहीं जानती..बैठक ब्लॉग का शुक्रिया....preetinoreply@blogger.com